नीरज कुमार महंत
साल 2020 पूरी दुनिया के लिए किसी बुरे सपने की तरह रहा है। इस साल कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जो पूरी सदी में पीढ़ियों से लोगों ने नहीं देखी थी, इस मुश्किल समय में हम क्या दुनिया में कोई भी देश इसके लिए तैयार नहीं था। चीन की लापरवाही से कोरोनावायरस इस सदी की सबसे बड़ी आपदा बन गई है।
इस साल हमने असल ज़िंदगी की ज़रूरत को बहुत करीब से देखा और समझा है। वो कहते हैं ना वक़्त कितना भी गुज़र जाए रोटी,कपड़ा और मकान इंसान की ये तीन ज़रूरतें कभी नहीं बदलती हैं। हम सब ने इसका उदाहरण पिछले कुछ महीनों में देखा है। किसी को घर की परेशानी तो किसी को खाने पीने की, किसी को नौकरी की चिंता तो किसी को परिवार से दूर होने का डर।
हमने सच में बहुत कुछ देखा है पर जब ऐसी मुश्किलें हमारी जिंदगी को हर तरह से प्रभावित कर रही थी तब कई लोग ऐसे भी थे जिन्हें देखकर मानवता पर भरोसा और भी मज़बूत होता है। उन लोगों ने यह साबित कर दिया कि घोर विपदा की घड़ी में भी हममें से कुछ लोग हैं जो हर संकट में हमारी सहायता के लिए खड़े हैं, जिन्हें हम कोरोना योद्धा के नाम से संबोधित करते हैं और भरपूर सम्मान देते हैं, जिनमें से एक कई लोगों के लिए मसीहा बन कर उभरे “सोनू सूद” भी हैं।
मगर इन सब के पीछे वो लोग भी उतने ही सम्मान के हकदार हैं जो अदृश्य हो कर मानवता में उतनी ही भागीदारी की है जितनी सामने से लड़ रहे कोरोना योद्धाओं ने की है। हमें बैंक कर्मचारियों, आस पास के राशन दुकानदारों, कोयला कर्मियों
शिक्षकों, किसानों और तमाम उन लोगों को भी सम्मानित कर उनको धन्यवाद करना चाहिए जिन लोगों ने बिना रुके, बिना डरे तमाम मुश्किलों के बावजूद हमारी रोजमर्रा की ज़रुरतों को पूरा किया।
हमारा देश और पूरी दुनिया कोरोना से लड़ रही है और सावधानी के साथ सामान्य जीवन की तरफ़ आगे बढ़ रही है, पर हमारी मुसीबत में हमारी सहायता करने वाले लोगों को भूलना नहीं चाहिए और उनके योगदान को भी उचित सम्मान देना चाहिए।