मधु राज से रघु राज तक आरकेएस कंपनी का दबदबा
रांची: टेरर फंडिंग को लेकर झारखंड की बहुचर्चित कंपनी राम कृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन यानी आरकेएस कंपनी के रांची स्थित कार्यालय में एनआइए का छापा पड़ने के बाद से पूरे राज्य में ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक दलों में खलबली मच गयी है. आरकेएस कंपनी का झारखंड की सत्ता पर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के जमाने में ही दबदबा कायम हुआ।
एनआइए की छापामारी के बाद अभी आरकेएस कंपनी के कागजात खंगालने का काम जारी है। अगर जांच सही दिशा में गई तो कई राजनेता, पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, ब्यूरोक्रेट्स और कई पत्रकार भी फंस सकते हैं। सत्ता के गलियारे में यह चर्चा आम है कि चाहे सरकार किसी की भी रही हो. कई बड़े पत्रकार से लेकर अफसर तक सब उनके घर पहुंचते थे.
एनआइए की वक्रदृष्टि आरकेएस कंपनी पर थी। एनआइए को इस बात की भनक थी कि झारखंड में कई कंपनियां और व्यवसायी वर्ग नक्सलियों को फंडिंग करते हैं। ऐसे आरोपियों की जांच एनआइए कर रही है। चंद महीने पूर्व कई लोगों को एजेंसी ने जेल भी भेजा है। इनमें कुछ बड़े बिजनेसमैन भी शामिल हैं।
झारखंड की सत्ता में ठेकेदारों का वर्चस्व रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के जमाने में सड़क को लेकर सरकार गिरी और सड़क को लेकर सरकार बनी भी। सरकार में ठेकेदार और इंजीनियर सत्ता की धुरी बने रहे। इसी के इर्द-गिर्द झारखंड की सत्ता घूमती रही है।
आरकेएस कंपनी बिहार के बेगूसराय की एक साधारण सी ठेका कंपनी थी. जिसकी हजारों करोड़ की कंपनी बनने की शुरुआत चाईबासा से हुई. ये कंपनी पूरे झारखंड में हजारों करोड़ रुपये के सड़क, भवन, पुल आदि का निर्माण कार्य करा रही है. पहले भी हजारों करोड़ के सड़क, भवन और पुल-पुलियों का निर्माण कंपनी करा चुकी है।
कंपनी की वजह से गयी
थी मुंडा की कुर्सी!
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के कार्यकाल में लगभग 150 करोड़ की लागत से चाईबासा की बहुचर्चित हाटगम्हरिया-बरायबुरु में 45 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य इसी कंपनी ने किया था. शुरु में हाटगम्हरिया-बरायबुरु सड़क की लागत 150 करोड़ की थी, जो बाद में बढ़कर लगभग 200 करोड़ की हो गयी. यहीं से मुंडा बनाम कोड़ा के बीच दूरियां बढ़ीं। बाद में राजनीतिक लड़ाई में तब्दील हो गयी। विधानसभा में भी आरकेएस कंपनी का मामला गूंजा। इसके बाद ही झारखंड की राजनीति में मधु कोड़ा नायक बनकर उभरे। अर्जुन मुंडा का सिंहासन डोलने लगा और अंततः उन्हें सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी। इसके बाद कंपनी की सत्ता में पकड़ मजबूत हो गयी. कहा तो यहां तक जाता है कि आरकेएस कंपनी के लिए झारखंड की सत्ता, सरकार, शासन-प्रशासन काम करती है। क्योंकि आरकेएस कंपनी सत्ता के केंद्र में हैं।
यह कारण था पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के 5 वर्षों के भाजपा शासन में आरकेएस कंपनी को हजारों करोड़ का ठेका नियमों को ताक पर रखकर दिया जाता रहा। रघुवर सरकार में एक बार फिर आरकेएस कंपनी का पथ निर्माण और भवन निर्माण विभाग में तूती बोलने लगी. पूर्व मुख्य सचिव रही राजबाला वर्मा के पथ निर्माण सचिव और भवन निर्माण सचिव के कार्यकाल में हजारों करोड़ का पथ निर्माण और भवन निर्माण का ठेका आरकेएस कंपनी को मिलता रहा. कई घपले-घोटाले के मामले उजागर हुए। कई आरोप भी लगे, पर रघुवर सरकार ने कभी जांच कराने की जरूरत नहीं समझी। और रघुवर दास खम ठोंक कर कहते रहे कि हमारी सरकार बेदाग है।
कंपनी का राजबाला
वर्मा से कनेक्शन
बताया जाता है कि राजबाला वर्मा के मुख्य सचिव बनने के बाद तो मानो राम कृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन की झारखंड के ब्यूरोक्रेसी और सत्ता पर एक तरह से कब्जा ही हो गया था। कई ऐसे प्रकरण सामने आये, जिससे स्पष्ट हुआ कि आरकेएस कंपनी खुद सड़क का प्राक्कलन तैयार करती है और कैसे ठेका हासिल करना है, यह भी कंपनी ही तय करती है.
आरकेएस कंपनी को करोड़ों की लागत ऐसा ठेका मिला, जिसकी लागत शुरु में कम थी. बाद में लागत बढ़ा दी गयी। कंपनी पर यह आरोप भी आरोप चस्पां है कि सरकार और अफसरशाही ने कंपनी को ठेका देने के लिए कुछ दिन पहले की बनी सड़कों के चौड़ीकरण के काम का टेंडर निकाल कर इसी कंपनी को उपकृत किया गया।
झारखंड में करीब 465 करोड़ में बना नया विधानसभा भवन, सारंडा में सड़क निर्माण, हाईकोर्ट के नए भवन का निर्माण, जिसका बजट 300 करोड़ से बढ़ाकर 600 करोड़ रुपये कर दिया गया था, का ठेका आरकेएस कंपनी को ही मिला था। विधानसभा भवन में 2019 के दिसंबर महीने में लगी आग के मामले में प्राथमिकी दर्ज कर जांच करने की बात थी, लेकिन प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। इसी तरह नए हाईकोर्ट भवन के निर्माण का बजट बढ़ाए जाने पर भी राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी थी। बताया गया कि नये हाइकोर्ट भवन के निर्माण में होती रही वित्तीय गड़बड़ी, राशि बढ़ाने की बात झारखंड हाइकोर्ट के जजों से भी छिपायी गयी।
उल्लेखनीय है कि पूर्व विकास आयुक्त डॉ डीके तिवारी, अपर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, केके सोन, विनय कुमार चौबे, सुनील कुमार और विधि विभाग के पूर्व प्रधान सचिव संजय प्रसाद की कमेटी ने हाइकोर्ट निर्माण की योजना का एग्रीमेंट बंद करने की सिफारिश की थी।
बहरहाल, एनआईए की जांच में क्या-क्या खुलासा होता है, यह देखना अभी बाकी है. वहीं मौजूदा हेमंत सरकार की कंपनी को लेकर क्या गति-मति होती है, यह देखना दिलचस्प होगा।