नारायण विश्वकर्मा / संपादक
केंद्र द्वारा खनिज के खनन में निजी दखल के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान करने के बाद झारखंड में विरोध की राजनीति शुरू हो गयी है। निर्दलीय विधायक सरयू राय ने हेमंत सरकार के सुप्रीम कोर्ट जाने के फैसले को जायज ठहरा दिया है. इसके बाद से भाजपा खेमे में बौखलाहट है।
सरयू राय ने झारखंड में भूमि कानूनों और मुआवजा संबंधी जैसे मुद्दों पर जो सवाल उठाया है, उसका जवाब देने के बजाय भाजपा नेताओं ने बेतूका सवाल उठा दिया है। कोलियरी क्षेत्र से आनेवाले गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे फरमाते हैं कि इस नीलामी से अवैध कोयले का कारोबार बंद हो जायेगा। उन्होंने हेमंत सरकार लपेटते हुए तर्क दिया कि माफिया के साथ मिलकर इस नीलामी को राज्य सरकार रोकना चाहती है। सच तो ये है कि नीलामी से कोल माफियाओं को और अधिक फायदा होगा है। फलतः राज्य में अापराधिक घटनाओं में और इजाफा होगा. इससे राज्य सरकार का सिरदर्द ही बढ़ेगा.
राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार का कहना है कि निजी क्षेत्र का कोयला खनन में प्रवेश नई घटना नहीं है। यानी वे चाहते हैं कि इसमें और तेजी आये। वे कहते हैं कि 70 प्रतिशत कोयला आउट सोर्सिंग कंपनियों के बूते ही निकल रहा है। उनकी इच्छा है कि सौ फीसदी कोलियरी का निजीकरण हो जाये। यानी वे चाहते हैं कि 30 फीसदी भी क्यों बचे? इसका मतलब ये हुआ कि कोल इंडिया की बीसीसीएल, सीसीएल और ईसीएल जैसी कंपनियों को अब बंद कर देना चाहिए।
कहीं बीएसएनएल की तरह कोलफील्ड न बन जाए.
दरअसल, केंद्र सरकार की तरफ से कोरोना संकट की आड़ में कोयला क्षेत्र में आउटसोर्सिंग का फैसला सबसे अधिक झारखंड जैसे राज्यों पर ही असर करेगा. जहां देश में कोयला उत्पादन का 26.08 प्रतिशत हिस्सा पाया जाता है। पिछले एक दशक में कोल इंडिया को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट नहीं रही है.
अगर 2011 में कोल इंडिया लिमिटेड को महारत्न का दर्जा प्रदान किया गया तो, इसका अर्थ ये हुआ कि वो देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान कर रही थी. फिर 9 साल में ही ऐसी क्या हालत हो गयी कि सरकार को उसके ऊपर से भरोसा उठ गया? कहीं केंद्र की मंशा बीएसएनएल की तरह ही कोल इंडिया को भी साइड करने की तो नहीं है? यही अंदेशा तो कोयला श्रमिक संगठनों को भी है.
निजी निवेश और आउटसोर्सिंग को कुछ हद तक उचित मान भी लिया जाये, लेकिन हम यह क्यों भूल जाते हैं कि खनिज उत्पादन भौगोलिक क्षेत्र को खोखला करता है. वहां के आसपास की बड़ी आबादी कई तरह की समस्याओं से ग्रस्त हो जाती है. सरकार की तरफ से निजी कंपनियों को प्रतियोगिता के साथ काॅमर्शियल माइनिंग की इजाजत देना शोषण के कई रास्ते खोल देंगे.
निजी मालिक बेलगाम हो जाएंगे !
जरा सोेचिये क्या ये संभव नहीं कि निजी मालिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए काम के घंटों को असीमित कर दे। वहीं एक बड़ी कंपनी अपने उत्पादन लक्ष्य को बढ़ाने के लिए कई छोटी-छोटी कंपनियों को काम का ठेका दे देगी। ये छोटी कंपनी पुराने खान मालिकों के ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के पात्र शाहिद खान जैसे पहलवानों की तरह होंगे, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ उत्पादन को बढ़ाना रह जाएगा.
लाखों की संख्या में लौटे प्रवासी मजदूर मजबूरी में 10-12 हजार के मासिक वेतन पर काम करने के लिए मजबूर हो जाएंगे.
कोयला मजदूरों के बीच 5 दशक तक काम करनेवाले और धनबाद के सांसद रहे स्व. एके रॉय ने अपनी किताब न्यू दलित रेव्यूलेशन में लिखा है- ‘खनिज क्षेत्र को सरकार सिर्फ एक आंतरिक उपनिवेश की तरह से देखती है. नदी क्षेत्र की व्यवस्था समुद्र क्षेत्र की व्यवस्था के साथ मिलकर खनिज क्षेत्र का सिर्फ दोहन करती है।’ स्व. एके राय के राजनीतिक हमसफर रहे झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन अब राज्यसभा के सदस्य हैं और उनकेे पुत्र हेमंत सोरेन आज झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने जो कदम उठाया है वह निश्चित रूप से जल, जंगल और जमीन की अवधारणा को मजबूत करता है।