झारखण्ड :- कोई भी आंदोलन को जमीं जोड़ती है और सत्ता तोड़ती है।किसी भी आंदोलन को सफल बनाने के लिए 5-6 समूह की जरुरत पड़ती है जिसमे पारंपरिक अगुवे , मध्यम वर्ग, धार्मिक अगुवे, राजनीतिक अगुवे, सामाजिक कर्म से जुड़े व्यक्ति, और दूसरे संगठन से जुड़े जन और संस्कृति कर्मी शामिल हैं।अगर उक्त सभी एक एजेंडे में मिल जाएं तो विजय हासिल होती है। खूंटी में patthagadi करने का अभियान एक ऐसा ही आंदोलन है।
लेकिन सत्ता उसे तितर बितर करने के लिए साम दाम दंड भेद की नीति अपनाती है। साजिश के तहत एकजुट जनता को वोट के समय बाँट देती है।स्कीम देकर उन्हें तोड़ती है।उसके लिए झूठे धर्मान्तरण का कार्ड खेल सकती है।ngo और धार्मिक अगुवों का संबंध विदेशों से जोड़ देश द्रोही ठहरा सकती है। पथल गड़ी आंदोलन को कमजोर बनाने के लिए साजिशन कुछ अपराधिक कर्म करवा सकती है। सस्ती राजनीति में आज यह संभव है।
इस संभावना से भी कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि अफीम की खेती में लिप्त दलालों ने इस घटना को अंजाम दिया हो। ताकि इतना दहशत फ़ैल जाए कि पुलिस भी वहां जाने से घबराए। इसे कहते हैं – एक लाठी से दो काम करना।सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
लेकिन आदिवासी विरोधी, ईसाई विरोधी, इन गोदी मीडिया को पहली नजर में कैसे पता चल जाता है कि पथल गड़ी गांव के लड़कों ने ही रेप किया है? इसके लिए फादर और सिस्टर दोषी हैं? इनके अलावे उनके नाक क्यों उस गंदे व्यवस्था पोषित गठबंधन को सूंघ नहीं पाता? मीडिया अपने कर्तव्य से दूर हो सत्ता की चमचई करने पर उतर आई है।
इससे लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा।खूंटी के पथल गड़ी अभियान ने एक जबर्दश्त जन बहस शुरू किया है। सरकार को इस बहस में भाग लेना चाहिए।
आदिवासी एकतिविस्ट एंड लेखक :- सुनील मिंज