बोकारो: राज्य में मंगलवार को 18 आईएएस अफसरों की तबादला सूची जारी की गई है। इसमें वर्ष 2007 बैच के आईएएस अधिकारी राजेश सिंह का नाम भी है। उन्हें बोकारो उपायुक्त की जिम्मेवारी सौंपी गई है। बुधवार को निवर्तमान उपायुक्त मुकेश कुमार से कार्यभार संभालेंगे। वे राज्य में उपायुक्त की कुर्सी पर पहुंचने वाले पहले दृष्टिबाधित अफसर हैं। इससे पहले वे उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग में विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थे।
पटना के धनरूआ निवासी राजेश सिंह को संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। उन्होंने 2007 में सिविल सेवा परीक्षा पास की। चार वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद 2011 में देश के पहले 100 फीसदी दृष्टिबाधित आईएएस अधिकारी बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। आईएएस अधिकारी बनने के सपने उन्होंने बचपन से ही संजोए थे, लेकिन बचपन में क्रिकेट खेलते समय एक हादसे में उनकी रोशनी चली गई थी। इसके बाद भी उन्होंने शिक्षा हासिल करने में अपना जीवट दिखाया। देहरादून मॉडल स्कूल, दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू से पढ़ाई पूरी की। इसके बाद कड़ी मेहनत कर यूपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की। लेकिन दृष्टिबाधित होने के कारण उनकी नियुक्ति का विरोध हुआ। बावजूद इसके उन्होंने हार न मानते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से मुलाकात की जिसके बाद कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपनी अर्जी दाखिल कीक राजेश सिंह की अर्जी पर मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर और अभिजीत पटनायक की बेंच ने संयुक्त रूप से मामले की सुनवाई की। जिसके बाद कोर्ट ने राजेश सिंह को नियुक्ति का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश के बाद उनकी पहली पोस्टिंग असम में हुई लेकिन भाषा में दिक्कत होने के कारण उन्हें झारखंड कैडर दिया गया। जिसके बाद से वह रांची में अपनी सेवा दे रहे थे।
राजेश सिंह ने तीन बार दृष्टिबाधित क्रिकेट विश्वकप में भी हिस्सा लिया है। वे कहते हैं कि इस सिस्टम में 100 फीसदी दृष्टिबाधित को शामिल करना थोड़ा मुश्किल रहा, लेकिन मैंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। अंतत: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने विजन (दूरदर्शिता) और आईसाइट (दृष्टि) में अंतर को स्पष्ट किया। आईएएस बनने के लिए आपमें दूरदर्शिता की जरूरत होती है दृष्टि की नहीं। राजेश सिंह ने अपने जीवन के संघर्षों पर एक किताब लिखी है ‘आई : पुटिंग आई इन आईएएस’। वे कहते हैं कि मैंने अपने संघर्ष का आनंद उठाया है। मुझे इस किताब को पूरा करने में एक साल लगे। यदि कोई तमाम बाधाओं के बाद भी अपने सपनों को पूरा करना चाहता है तो उसके लिए दृढ़इच्छाशक्ति, धैर्य और कड़ी मेहनत होना जरूरी है।