8 मार्च विश्व महिला दिवस पर विशेष
पलामू (झारखण्ड) : भारत सहित पूरे विश्व में इज्जत के साथ जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है। भारतीय संविधान और कानून व्यवस्था ने भी मानव अधिकार को संरक्षित करने में सराहनीय कदम उठाए हैं। पर क्या बस एक मुल्क में पैदा भर हो जाने से, वहां का वोटर कार्ड, या राशन कार्ड, या आधार कार्ड पा लेने से उस देश में गठित कानूनों से हम बंध जाते हैं? या अपने अधिकारों के हकदार बन जाते हैं. भारत में ऐसा लगता है कि अमीर और ताकतवरों को कानून नहीं बांधता। देश में गरीब, दलित और महिलाओं के लिए कोई अधिकार नहीं है। ऐसे ही एक मानव अधिकार जिससे मैं इस गद्य में शुरुआत में शुरुआत से प्रकाश डाल रही थी, वह है,- जीवन को स्वाभिमान और इज्जत से जीने का हक। या हम कह सकते हैं Right to live with Dignity. यह अधिकार हमें संविधान के आर्टिकल 21 से मिला है। महिलाओं को हमेशा इस मानव अधिकार की धूप से वंचित अपमान, यौन शोषण और गैरबराबरी की मैली छाया मैं रहना पड़ा है। भारत में कानूनी व्यवस्था ने इस मानव अधिकार को दोबारा बरकरार करने वश, anti sexual harassment at workplace act, 2013 ले कर आयी। ताकि जो महिलाएं घर से बाहर अपनी बराबरी से जीने का हक को हकीकत में उतारने आगे आए, उन्हें कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन जैसे दुस्वप्न ना देखने पड़े, जो उन्हें इस हकीक़त को साकार करने में उनके आढ़े आये।
इस कानून के तहत हर महिला जो किसी भी मान्यता प्राप्त सरकारी या गैर सरकारी संस्थान में काम करती है, उन्हें एंटी सेक्सुअल हरासमेंट आठ वर्कप्लेस एक्ट ,2013 के तहत एक ऐसी शिकायत कमेटी का सहयोग होगा, जो उनके कार्य स्थल पर किसी भी तरह के यौन शोषण की तुरंत शिकायत दर्ज करें और उस शिकायत को गोपनीय रखते हुए न्याय तो करें ही, साथ ही साथ समय-समय पर यौन शोषण के खिलाफ जागरूकता भी फैलाने हेतु सेमिनार व कार्यक्रम करें।
हमारी fact finding team ने इसी कानून के तहत बनने वाली complain body जिसे आंतरिक शिकायत कमेटी (internal complaint committee, ICC) कहते हैं, की मौजूदगी व जिम्मेदारियों का कार्यवहन का पता लगाने, पलामू प्रमंडल के विभिन्न संस्थाओं में गई।
2013 में ही कानून पारित होने और 2015 में इसका संशोधन कर सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों (higher education institutes, HEI) को भी इसमें शामिल करने के बावजूद, हमारे fact finding team ने को पाया वो आश्चर्यजनक है।
जो भी संस्थानों में हम गए वहां के जिम्मेदार अधिकारियों का इस कमेटी से सक्रिय तो दूर, पदाधिकारियों को ऐसी कोई कमेटी के बारे में खबर तक नहीं है। कई जगह दो लोग ऐसी कोई कमेटी की आवश्यकता ही क्या है इस पर बहस में हम से जुट गए।
शुरुआत हमने शहर डाल्टनगंज के सदर अस्पताल से की, पुरुष से लेकर महिला कर्मचारियों को इस कानून और इस कमेटी के अस्तित्व की कोई जानकारी नहीं। जब सब कर्मचारियों से बात करते हुए हम सिविल सर्जन के जगह पर उस दिन प्रभार उठाए अधिकारी, Dr. Sanjay, के पास पहुंचे, तो उन्होंने पहले तो हमे मुद्दे से भटकाने के लिए, हमें अस्पताल की कमियों को गिनाना शुरू कर दिया। जब हम मुद्दे पर आए, तो उन्होंने ऐसे किसी कमेटी और किसी शिकायत को गोपनीय रखने की आवश्यकता ही नहीं बताई। यह की पुलिस और अस्पताल प्रशासन ऐसी शिकायतों को देखने के लिए काफी है। उनसे बहस में ना जाते हुए हमने इस कमेटी की जरूरत पर जब जोर डाला, तो उन्होंने यह कहकर कि “अगर पुलिस और हम तक शिकायत नहीं लेकर आ सकती महिलाएं, तो उन्हें जीना ही नहीं चाहिए” बोलकर हमें खारिज किया और C.S. Office जाने का सुझाव दिया। अस्पताल में कई ऐसी महिलाओं ने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से उन पर शोषण के सबूत और गवाही दी। बस डर यही था कि, कहीं उनका नाम ना उजागर हो जाए, तोह उन्हें इस कॉन्ट्रैक्ट की नौकरी से भी हाथ धोना ना पड़ जाए, जा उनको और कठिनाइयों का सामना करना पड़े। सो उन महिलाओ का नाम हम गोपनीय रखते है, जैसे कि ,ICC अगर होती तोह रखती।
C.S. Office जाने पर वहां मौजूद अधिकारियों ने बात तो अच्छी तरह से की, पर उन्हें भी इस कानून और उसके तहत कमेटी की कोई जानकारी नहीं थी। जब हमने इस कमिटी की आवश्यकता और सरकार की नीतियों में इसे लागू करने को प्राथमिकता देना और हर संस्था में इसका होना अनिवार्य बताया, तो उन्होंने बचाव में इस बात की तो पुष्टि की कि 2013 में ऐसी कमेटी के गठन की बात हुई तो थी और कमेटी गठित भी हुई थी। लेकिन कमेटी कि मौजूदा हालत क्या है और और कमेटी द्वारा संचालित सेमिनार और जागरूकता अभियानो पर मौन रहे। उनकी यह जो भी इस बात का प्रमाण है, की कमिटी या तो वहां नाम की भी नहीं है, और काम की तो बिल्कुल भी नहीं है। बाकी संस्था जैसे कि नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय और अन्य सरकारी संस्था जैसे कि डीआरडीए, NRLM और जिला समाहरणालय में भी यही आलम है।
नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय की छात्रा होने की वजह से , यह तो मुझे पता है कि, 2017 में NAAC टीम का गठन, पूरे देश के शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यलयों की गुणवत्ता के आधार पर उनकी रैंकिंग होनी थी, आइसा वजह से नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में आंतरिक शिकायत समिति सिर्फ कागजी तौर पर मौजूद है, तौर पर मौजूद है, पर एक बार भी इस कमेटी के गठन के लिए छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के बीच ना तो कोई चुनाव हुआ है, ना ही कोई जागरूकता अभियान हुए हैं यहां तक कि आई सी सी का इन सभी जगहों पर एक ऑफिस तक नहीं। जहां महिलाएं, छात्राएं और कर्मचारी अपनी शिकायतों को लेकर जा सके। इन सारी कहानियों के नायक हमारे जिले के उपायुक्त हैं, जो पता नहीं किस कुर्सी में बैठ कर इन सभी संस्थाओं को देख रहे हैं क्योंकि इन सब संस्थाओं में कमेटी के गठन से लेकर उस कमिटी में दर्ज सारी शिकायतों की यथास्थिति पता करना, सेमिनार व जागरूकता अभियान हो रहे हैं या नहीं, यह यह पूछना और सुचारु रुप से लागू करना उन्हीं के हाथ में है। लगातार उपायुक्त कार्यालय के चक्कर लगाने पर, हमें बस उपायुक्त के फोन नंबर 755 826 6122 के साथ निशब्द लौटना पड़ा, जिसे उनके प्रिय ने बड़े कतराते हुए दिया। शायद आपको इस पर कॉल कर कुछ जवाब मिल जाए।अब आप यह सोचिए कि महिलाओं के अधिकार जो अभी तक कागजातों के लिखावट की दवात में कैद है, जिनको हासिल भर करने के लिए ना जाने कितने आंदोलन किए गए। तो हम महिलाओं की इज्जत और बराबरी से जीवन जीने की रूत न जाने कब, इन सभी पिंजरों को तोड़ खोली हवा में सांस लेगी?
दिव्या भगत, छात्रा, पत्रकारिता विभाग, नीलाम्बर-पीताम्बर, विश्व विद्यालय, डाल्टनगंज, झारखण्ड
HOT
- सार्वजनिक मंदिर परिसर को व्यवसाय का जरिया बनाने का मासस ने किया विरोध
- हमेशा औरों की मदद करो - देव कुमार वर्मा
- फादर स्टैन स्वामी की एनआईए द्वारा गिरफ्तारी का विभिन्न संगठन ने कड़ी निंदा किया साथ हीं बेशर्त रिहाई की मांग की
- भोजपुरी फ़िल्म हमदर्द के लिए सूरज सम्राट किये गए अनुबंधित
- युवा महिला सशक्तिकरण केंद्र की छात्राओं ने नुक्कड़ नाटक कर बेटियों को न्याय देने और दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग की