कोरोना काल की अप्रत्याशित घटना। दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी जिस बीजेपी ने मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाया था. अचानक शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें क्लीन बोल्ड कर दिया.
अब इसके बीजेपी के मठाधीशों की क्या रणनीति है ये तो अभी कहना मुश्किल है। वैसे मनोज तिवारी का विवादों से नाता रहा है। सांसद मनोज तिवारी को 2016 में दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी थी।
सोशल डिस्टेंसिंग विवाद
चंद दिनों पहले मनोज तिवारी हरियाणा के सोनीपत में क्रिकेट मैच खेलने चले गए थे। उन पर लॉकडाउन तोड़ने का आरोप लगा था। लॉकडाउन और हरियाणा बॉर्डर सील होने के बावजूद मनोज तिवारी सोनीपत पहुंचे थे। वहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ीं और तिवारी ने खुद भी मास्क नहीं पहना हुआ था। क्रिकेट मैच में भीड़ में वहां वे बिना मास्क लगाए नजर आये थे। इसके बाद इस हरकत पर उन्हें सफाई तक देनी पड़ी थी।
हालांकि कोरोना काल में वे भाजपा के एकमात्र ऐसे कद्दावर नेता थे, जिन्होंने ऐसी नादानी की थी। जब सारा मुल्क कोरोना के कहर से जूझ रहा हो, ऐसी स्थिति में उन्हें क्रिकेट के लिए मना कर देना चाहिए था।
मनोज तिवारी राजनीतिक रूप से अपरिपक्व हैं। इसकी कई मिसालें वे पूर्व में दे चुके हैं। दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान भी उनकी अपरिपक्वता खुल कर सामने आयी थी। जब सभी को पता था कि दिल्ली भाजपा चुनाव हार रही है, लेकिन उन्हें यकीन था कि वे दिल्ली फतह कर रहे हैं। दरअसल स्टारडम के आगे गलतियों को भी गले लगाये जाने अब रिवाज बन चुका है।
भोजपुरी एक्टर और सिंगर मनोज तिवारी को साल 2016 में दिल्ली की कमान सौंपी गई। उस वक्त दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेता हैरत में थे।
दिल्ली में भाजपा की फजीहत कराने में सिर्फ मनोज तिवारी ही केंद्रीय भूमिका में नहीं थे, बल्कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह स्वयं लीड रोल में थे। इसके अलावा सांसद प्रवेश कुमार वर्मा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी थे। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते और दिल्ली में मुख्यमंत्री की दावेदारी में मनोज तिवारी सबसे आगे चल रहे थे। आप पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से जब पूछा गया कि मनोज तिवारी क्या हैं? तब केजरीवाल ने मुस्कराते हुए कहा था कि वो रिंकिया के पापा….अच्छा गाते हैं। ऐसे भी उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को लेकर उन्हें एक गवैया से ज्यादा नहीं माना गया। दरअसल, मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे पूर्वांचल वोट बैंक को साधना था। दिल्ली में लगभग 40 फीसदी पूर्वांचली वोट हैं लेकिन यहां भी तिवारी का कोई करिश्मा नहीं चला।