नारायण विश्वकर्मा / संपादक
रांची के राजधानी बनने के बाद इसके दामन पर इतने दाग लगे हैं कि अब उन धब्बों को नहीं मिटाया जा सकता। ये किसी के बूते की बात नहीं। रांची को सौंदर्यीकरण के नाम पर बदसूरत किया गया, वहीं जलाशयों के संरक्षण और उसके रखरखाव के नाम पर शासन-प्रशासन ने बंटाधार कर दिया।
इस मामले में राज्य की सभी सरकारों को झारखंड हाईकोर्ट की ओर से फटकारें मिली और उनके कार्यकलापों पर गंभीर टिप्पणियां भी की गयीं। इस बीच 20 साल गुजर गये। हालात में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, अलबत्ता उससे और भी बदतर हो गया।
झारखंड हाईकोर्ट ने एक बार फिर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए रांची के बीचोंबीच स्थित बड़ा तालाब की दुर्दशा पर गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने राज्य के अन्य जलस्रोतों और जलाशयों के संरक्षण और उसे अतिक्रमण से बचाने के लिए राज्य सरकार की नीति की भी जानकारी मांगी। यह भी कहा है कि अगर कोई नीति नहीं बनायी गयी है तो जल्द बनायी जायें।
ऐसा नहीं है कि नीतियां नहीं बनीं। लेकिन शासन-प्रशासन ने ठेकेदारों और इंजीनियरों के लिए नीति-नियमों में सुराख भी बना डाले, ताकि सुगमता से उनका कार्य संपादन हो जाए.
आखिर क्या कारण है कि अभी तक राज्य के विभिन्न जिला प्रशासनों और नगर निकाय-निगम जलाशयों को बचाने में सौ फीसदी फिसड्डी साबित हुए? चंद दिनों पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को यह कहना पड़ा कि रांची के गेतलसूद डैम का हाल भी कहीं कांके डैम जैसा न हो जाये। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद रांची के उपायुक्त सहित जिला प्रशासन की टीम ने गेतलसूद डैम का निरीक्षण किया। यह दुर्भाग्य की बात है कि इस तरह के निरीक्षण सीएम या फिर अदालत के आदेश पर करना पड़ता है।
राज्य के सभी प्रमुख शहरों में जलाशयों-पहाड़ों का वजूद मिटाकर इमारतें खड़ी कर दी गयीं। सिर्फ राजधानी में दर्जन भर तालाबों का वजूद मिटाकर वहां अपार्टमेंट का निर्माण करा दिया गया. ये सब कुछ शासन-प्रशासन की नाक के नीचे हुआ। लेकिन किसी का कुछ नहीं बिगड़ा।
आरआरडीए में टाउन प्लानर की हुकूमत चलती थी. गजानंद राम और राम कुमार सिंह जैसे टाउन प्लानर अपनी मर्जी से आरआरडीए का चेयरमैन रखवाता था. उनके इशारे पर वह काम करता था. अब यही काम खुल्लमखुल्ला नगर निगम में हो रहा है. कुछ भी नहीं बदला है.
नगर को ‘नगर’ के मंत्री ने बर्बाद किया
सौंदर्यीकरण के नाम पर हरमू नदी को नाला बना दिया गया और रांची के बड़ा तालाब के आकार को और भी छोटा करने का काम किया गया।
ये सब तब हुआ, जब रांची के 5 टर्म से लगातार विधायक सीपी सिंह हैं. रांचीवासियों को लगा था कि पूर्ण बहुमत की सरकार में नगर विकास विभाग संभालने के बाद वह जरूर राज्य के शहरों के अलावा राजधानी को भी पूरी शिद्यत से संवारेंगे। हरमू नदी और बड़ा तालाब के सौंदर्यीकरण के सूरतेहाल सबकुछ बयां कर देते हैं. लंबे समय से बड़ा तालाब को जलकुंभी ने अपने आगोश में ले लिया है. इसे साफ करने के लिए रांची नगर निगम ने छह बार टेंडर निकाला गया, लेकिन काम शुरू नहीं हो पाया. इसकी जवाबदेही नगर विकास मंत्री पर थी। उन्हें सबकुछ पता था कि कहां गड़बड़ी है।
इसके बावजूद लफ्फाजी के अलावा और कुछ हासिल नहीं हुआ। जलकुंभी के बीच ही स्वामी विवेकानंद की स्टेच्यू लग गयी। आधे-अधूरे निर्माण कार्य के बीच 12 जनवरी 2018 में स्टेच्यू का अनावरण कर दिया गया। उस वक्त भी मंत्री-मुख्यमंत्री ने कहा कि जल्द ही जलकुंभी की सफाई करायी जायेगी। दो साल बीत गये। अब एक बार फिर सफाई अभियान जारी है। देखना है ये कबतक चलता है. करोड़ों खर्च कर हरमू नदी को नाला बनाकर छोड़ दिया गया।
हरमू नदी पार कर मंत्रियों-संतरियों का काफिला गुजरता है. इसके खिलाफ कहीं से कोई आवाज नहीं उठती. कोई भी राजनीतिक दल या संगठन आंदोलित नहीं होते. सिर्फ चौक-चौराहों पर लफ्फाजियों का सोसा छूटता रहता है. राजभवन के सामने नागाबाबा खटाल को तोड़ा गया। चंद महीने बाद वहां यथास्थिति कायम हो गई. सात-आठ साल गुजर गये। कागज पर प्लानिंग बन गयी। फाइल अभी नगर विकास विभाग में धूल फांक रही है. नगर विकास मंत्री फाइलों पर कुंडली मारे बैठे रहे।
दरअसल, ये सब इसलिए संभव हो पाता है, क्योंकि हर सरकार में ठेकेदारों-इंजीनियरों को उनके पालतू अफसर मिल जाते हैं। सरकार बनाने-गिराने की ताकत रखनेवाले इंजीनियर-ठेकेदार के गठजोड़ ने झारखंड को कंक्रीट का जंगल बना दिया। बंटवारे के बाद बिहार से आये इंजीनियरों ने अपने खेमे के ठेकेदारों को भी यहां लाकर ग्रामीण कार्य, भवन, पथ निर्माण, जलसंसाधन व नगर विकास जैसे विभागों को कामधेनु बना डाला।