जीवन के अंधेरो में भी टिमटिमाती रही तारामणि
आम तौर पर गांवों/पंचायतो में महिला जनप्रतिनिधियों को कमतर आँका जाता है. परन्तु लातेहार जिले के गारु प्रखंड अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत चोरहा की मुखिया तारामणि देवी ने सभी मिथकों को तोड़ते हुए ग्रामीण इलाके में नारी सशक्तिकरण की मिसाल पेश की है l तारामणि अपने पंचायत से संबंधित सभी काम खुद करती है और अपने सहारे के लिए अपने पास एक मात्र मोटरसाइकिल रखी है जिससे वे काम के सिलसिले में अकेले ही जंगलो-पहाड़ो-नदियों से गुजरते हुए अपने पंचायत, प्रखंड गारु तथा जिला लातेहार का चक्कर लगातेरहती है. तारामणि अपनी कामकाजी जीवन का सफर तारा स्वयं सहायता समूह के अध्यक्ष के तौर पर की, इसके बाद जीवन में मुश्किल दौर आने के बाद भी पीछे मुड़ कर कभी नही देखी l 2010 के पंचायत चुनाव में अपने पंचायत की पंचायत समिति सदस्य के रूप में चुनी गयी फिर 2015 के पंचायत चुनाव में बड़े वोटो के अंतर से मुखिया पद पर जीत दर्ज की l तारामणि के जीवन में उस समय पहाड़ जैसा संकट खड़ा हो गया था जब 28 मार्च 2011 को उनके पति मोहन सिंह की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गयी थी. तारामणि बताती है यह घटना हमे पूरी तरह हिला कर रख दिया था तथा मेरे मन-मस्तिस्क में जीवन के प्रति तरह-तरह के नाकारात्मक विचार उत्पन होने लगे थे. परन्तु कुछ दिनों के बाद जीवन सामान्य होने लगा तथा मैं अब पुन: एक नई ज़िन्दगी की शुरुवात करने की सोची और इसी के कड़ी में अपने पुरे पंचायत को ही अपना घर-परिवार समझ ली. पंचायत समिति के पद पर रहते हुए अपने पंचायत में बेहतर काम किया l इसी का नतीजा था कि 2015 के पंचायत चुनाव में मुझे पंचायत की जनता ने मुखिया पद के लिए खड़े 8 उम्मीदवारों में सबसे योग्य समझा और मै चोरहा पंचायत की मुखिया चुनी गई. तारामणि गारू प्रखंड के तेज-तरार मुखिया के रूप में जानी जाती है.पंचायत से संबंधित सभी छोटे-बड़े निर्णय अपने बारीकी समझ के साथ खुद लेती है. वे अपने पंचायत, प्रखंड में अपने एकमात्र सहारा मोटरसाइकल के साथ अक्क्सर मिल जायेगी l अनुसूचित जनजाति परिवार से आने वाली तारामणि 2003 में योध सिंह नामधारी महिला कॉलेज मेदिनीनगर से स्नातक ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की है और 2003 में ही उनकी शादी ग्राम पुरनकी डबरी, पंचायत चोरहा, गारू, लातेहार के मोहन सिंह के साथ हुई थी. तारामणि बताती है कि मेरे ससुराल सहित गाँव का माहौल मेरे मायके ग्राम जोरी सखुवा पंचायत पोचरा, लातेहार से काफी भिन्न था. भयंकर गरीबी थी, जागरूकता का घोर अभाव था तथा लोग साफ-सफाई का भी ख्याल नही रखते थे जिसके कारण लोग बीमारी से परेशान रहते थे तथा जो भी पैसा कमाते थे सब डॉक्टर के पास चला जाता था . फिर मैं अपने आस-पास के लोगों को समझाना प्रारंभ किया, धीरे-धीरे आस-पास के बच्चो को अपनी ओर आकर्षित की और दो-चार बच्चो को रोज नहा देती थी . जब बच्चो के माँ-पिता जी को बोलती थी कि साफ़-सफाई पर ध्यान दीजिये बीमारी नहीं होगा तब गाँव के लोग मुझे बहुत गालियाँ देते थे. लोग ताना मारते थे ‘आज तुम आ गयी हो तो हमलोग को रहने नही आ रहा है तुम बहुत जानती हो’ . सब कुछ मैं चुप-चाप सुनते रहती थी क्योकि मैं जानती थी ये लोग ऐसी बातें अशिक्षित होने के कारण कर रहे है l लोग यहाँ तक बोलते थे कि “ तू पढ़े जाने हे इहे ला हमनी के दबावSS है. लेकिन धीरे-धीरे लोगों के रहन-सहन, साफ़-सफाई में परिवर्तन आया और कल तक गालियाँ देने वाले लोगों का हमारे प्रति अब नजरिया भी बदल चूका है. जब मुखिया तारामणि से पूछा कि अभी तक आपके ज़िन्दगी में ख़ुशी का सबसे बड़ा क्षण कभी आया है क्या ? तो मुस्कुराते हुए तारामणि बोलती है जिस दिन(2000 ई0) मैं अपना इंटर की रिजल्ट देखी थी जिसमे मैं प्रथम श्रेणी से पास की थी, मेरे जीवन का सबसे अच्छा और ख़ुशी का दिन था l मैं इंटर में कड़ी मेहनत कर पढाई की थी l ऐसा ख़ुशी और किसी दिन न तो पहले था और न आज तक कोई ख़ुशी का दिन आया l रिजल्ट देखने के बाद मुझे ख़ुशी का ठिकाना नही था. तारामणि उच्च विद्यालय कसियाडीह, मनिका से 1998 में मैट्रिक, योध सिंह नामधारी महिला कॉलेज, मेदिनीनगर से 2000 में इंटर तथा 2003 में स्नातक की
परीक्षा उतीर्ण की थी . तारामणि बताती है मेरी ज़िन्दगी बचपन से ही कठिनाइयों से गुजर रहा है जब मैं एक साल की थी तब नदी में लगभग 150 फीट की दुरी तक बह कर चली गयी थी, हमारी माँ किसी तरह नदी से बाहर निकाली. इलाज के बाद हमारी ज़ान बच पाई जंगलो-पहाड़ो के बीच रहने वाली तारामणि पहाड़ जैसी संकटों का सामना बड़ी हिम्मत से की है l वे लोगों से बड़ी ही विनम्रता से बातें करती है. घमंड या अहंकार जैसी चीजो से काफी दूर रहती है. इसी का नतीजा है कि पंचायत के लोग भी उन्हें उतना ही प्यार देते है. अंत में तारामणि कहती है हमारे अपने कोई संतान नही है अब मै अपने पंचायत को ही अपना घर-परिवार मान ली हूँ लोगों की परेशानियों को दूर करने में या उनकी सहायता करने में हमे संतुष्टि मिलती है जब तक संभव होगा समाज सेवा से जुडी रहूंगी.
हरीश कुमार
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