रांची (झारखण्ड) : आज मामूली बात पर थाने में एफआईआर दर्ज करा दी जाती है. जमीन विवाद में कई पीढ़ियां कोर्ट-कचहरी में चक्कर काटती रह जाती हैं. ऐसे में झारखंड के रामगढ़ जिले का चेटर गांव नजीर पेश करता है. आजादी से लेकर अब तक इस गांव के किसी विवाद में थाने में एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. गांव की एकता की दाद देनी होगी कि वह आज भी अपने विवाद खुद सुलझा लेता है. वक्त बदला, लेकिन इस गांव की रवायत नहीं बदली. साधारण सा दिखनेवाला यह गांव कई मायनों में झारखंड के साढ़े बत्तीस हजार गांवों के लिए सीख है. बात साक्षरता की हो, तकनीकी शिक्षा की, आपसी सहयोग की, बुजुर्गों के सम्मान की, मृतकों को श्रद्धांजलि देने की या सरकारी नौकरी करनेवालों की. इस गांव का कोई सानी नहीं है.
देखने में बिल्कुल सामान्य है चेटर गांव :- रामगढ़ जिले का चेटर गांव. ऊंचे पहाड़ों के नीचे बसे इस गांव की दूरी जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर है. रांची-रामगढ़ मुख्य सड़क पर बूढ़ाखुखड़ा के पास ऊंचे पहाड़ पर महामाया मंदिर आपका स्वागत करता है. बूढ़ाखुखड़ा के बाद चेटर है. 150 घर और करीब डेढ़ हजार की आबादी है. बाहर से देखने में यह गांव बिल्कुल सामान्य है. खेतों में पीले सरसों, खलिहान में पुआल, खेतों में काम करते किसान एवं गाय-बकरी चरा रहे ग्रामीण, पेयजलापूर्ति के लिए बना जलमीनार, दो आंगनबाड़ी केंद्र, राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय और पूजा के लिए मंदिर. यही है गांव की तस्वीर.
सादा जीवन उच्च विचार :- वेशभूषे से यहां के ग्रामीण सामान्य दिखेंगे, लेकिन जब आप उनसे बात करेंगे, तो उनके ‘सादा जीवन उच्च विचार’ जानकर चौंक जायेंगे. युवा हो, बुजुर्ग हो या सामान्य सी दिखनेवाली बहू. सबका आत्मविश्वास प्रेरित करता है.
आजादी से लेकर आज तक थाने में एक भी एफआईआर नहीं :- धोती-कुर्ता, पैर में चप्पल, गले में गमछी और भूरी टोपी पहने गांव के सबसे बुजुर्ग 82 वर्षीय तुलाराम महतो अपनी तीनों बकरियों को दिनभर चराकर शाम को घर लौटते हैं. गांव की बात छेड़ते ही वह कहते हैं कि कई मायनों में यह गांव सबसे अलग है. आजादी से लेकर आज तक इस गांव के किसी विवाद में थाने में एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. गांव के लोग खुद मिलबैठकर इसे सुलझा लेते हैं. आजादी की चर्चा करते ही उनके चेहरे की चमक निखर जाती है. कहते हैं कि वो दौर ही अलग था. देशप्रेम का गजब जज्बा था. उस दौरान उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाय.
गांव की बात गांव में ही, मिलबैठकर करते हैं फैसला :- 72 वर्षीय सेवानिवृत पंचायत सेवक मुटुकराम करमाली अपने घर की दहलीज पर बैठे हैं. शाम का वक्त है .परिवार के साथ साग-सब्जी निकाने में जुटे हैं. कहते हैं कि मारपीट हो या जमीन विवाद. थाना या कोर्ट-कचहरी कोई नहीं जाता. गांव की बात गांव में ही रहे. इसके लिए गांववाले बैठते हैं और मिलजुलकर उसे सुलझा लेते हैं. इस दौरान दोषी व्यक्ति से जो जुर्माना लिया जाता है, उसे सार्वजनिक कार्यों या गरीब की मदद में खर्च किया जाता है. वह बताते हैं कि गांव में काफी बदलाव हुआ है. अब जलमीनार से गांव में पेयजलापूर्ति की जाती है. अधिकतर घरों में शौचालय है.
घर बने न बने, बच्चा जरूर पढ़ना चाहिए :- तमिलनाडु के अन्नामलाई यूनिवर्सिटी से बीटेक कर चुके अनिकेत ओहदार कहते हैं कि यहां शिक्षा पर जोर है. पहले घर बनाने की बजाय लोग बच्चों को पढ़ाना जरूरी समझते हैं. यही कारण है कि इसी गांव का वैभव ओहदार यूरोप के अर्मेनिया से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है. हर घर में ग्रेजुएट है. गांव काफी सजग है. कोई व्यक्ति यहां शराब पीकर हंगामा करता नहीं दिखेगा.
ये है गुरुजी का गांव :- आईटीआई पास कर चुके दीपक कुमार महतो बताते हैं कि ये गुरुजी का गांव है. यहां हर घर में गुरुजी यानी मास्टर साहब मिल जायेंगे. गांव में 40 सरकारी शिक्षक हैं. 20 प्राइवेट शिक्षक हैं. 10 छात्र इंजीनियरिंग कर रहे हैं. पांच लोगों को खेल कोटे से रेलवे में नौकरी है. कई युवा फोर्स (बीएसएफ, सीआरपीएफ) में भी हैं. थाना क्षेत्र में इस गांव की काफी इज्जत है.
हर घर में टेक्निकल एजुकेशन :- गांव की बहू शीला कुमारी आवासीय विकलांगता विद्यालय, लारी में शिक्षिका हैं. अपने बच्चे को गोद में लिए खड़ी हैं. कहती हैं कि शिक्षा सभी समस्याओं का समाधान है. यहां पढ़ाई पर काफी जोर है. हर घर में टेक्निकल एजुकेशन (बीएड, डीएड, आईटीआई. पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग इत्यादि) है. अभी 70 लोग ट्रेनिंग पीरियड में हैं. साक्षरता के कारण विवाद नहीं के बराबर होता है.
स्कूल में बुजुर्गों को सम्मानित करने की रवायत :- राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, चेटर भी अन्य स्कूलों से अलग है. आठवीं कक्षा तक के इस स्कूल में 189 विद्यार्थी हैं. पांच पारा शिक्षक समेत प्रधानाचार्य हैं. पारा शिक्षिका सुनीला देवी कहती हैं कि स्कूल में हर गणतंत्र दिवस को गांव की सबसे बुजुर्ग महिला जबकि स्वतंत्रता दिवस को सबसे बुजुर्ग व्यक्ति बतौर मुख्य अतिथि झंडोतोलन करते हैं. इस दौरान उन्हें सम्मानित भी किया जाता है.
दशहरे में मृतकों को दी जाती है श्रद्धांजलि :- रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग से सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ बीएन ओहदार कहते हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में रह रहे इस गांव के लोग दशहरे में जरूर जुटते हैं. हर साल नाटक मंचन होता है. इस दौरान नवमी को वर्षभर में मृत लोगों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी जाती है साथ ही सेवानिवृत (रिटायर) हो चुके लोगों को सम्मानित करते हुए उन्हें अब अपने गांव की सेवा करने की शपथ दिलायी जाती है.
रथयात्रा को नई दुल्हन करती हैं मऊर की पूजा :- गांव के मऊरसेरी में रथयात्रा के दिन नई-नवेली दुल्हन मऊर की पूजा करती हैं. इस दौरान सामूहिक नृत्य भी किया जाता है. प्रोफेसर ओहदार बताते हैं कि यह सदियों पुरानी परंपरा है. इस बार उनका प्रयास होगा कि परिचय सत्र का आयोजन किया जाये, ताकि नयी दुल्हनों को एक-दूसरे को जानने का मौका मिले और उनकी प्रतिभा से गांव के लोग अवगत हो सकें.
गांव के संपूर्ण विकास के लिए किसान सभा का गठन :- श्री ओहदार कहते हैं कि गांव के संपूर्ण विकास के लिए किसान सभा का गठन किया गया है. इसके जरिए घाटे की खेती-किसानी के कारण निराश किसानों को संबल देते हुए फंड जमा करने की कोशिश की जा रही है, ताकि जरूरत पर उसका उपयोग किया जा सके. इस बार हर घर से दो-दो सूप धान जमा कराया गया है. इसकी राशि किसान सभा के अकाउंट में जमा रहेगी.
80 वर्ष हो गया है, आज तक पेंशन नहीं मिली है :- शाम के पांच बजे का वक्त है. हाथ में लाठी लेकर कंबल ओढ़े 80 वर्षीय पूरन करमाली पास आकर यकायक कह उठते हैं. बाबू 80 वर्ष हो गया है. आज तक पेंशन की राशि नहीं मिली है. मुखिया समेत कई लोगों को आवेदन देकर गुहार लगा चुके हैं. कहते हैं पत्नी को भी पेंशन नहीं मिलती है. पेंशन दिलवा दीजिए बाबू.
सड़कों पर बहता है पानी :- गांव में नालियों का अभाव है. इसके कारण घर का पानी सड़कों पर बहता दिखता है. राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय में चहारदीवारी नहीं है. चारों तरफ से खुला होने के कारण साफ-सफाई का अभाव दिखता है