रांची(झारखण्ड ) : अधिकारी की संलिप्तता की जांच किये बिना ही केस को बंद कर दिया गया है. bसिटी एसपी ने की थी अनुशंसा : सिटी एसपी अमन कुमार की अनुशंसा पर केस के अनुसंधानक लोअर बाजार थाने के प्रभारी सुमन कुमार सिन्हा ने मामले की जांच बंद कर दी. इसके लिए तर्क दिया कि मामले में आरोपी रवि बोदरा, दिनेश प्रजापति, जेरोलिन केरकेट्टा, मशी केरकेट्टा और अप्राथमिकी अभियुक्त जोसेफ डिफोर्ट लकड़ा के खिलाफ अंतिम प्रतिवेदन (संख्या 356/ 17) के तहत न्यायालय को फाइनल रिपोर्ट भेजी जा चुकी है. केस की जांच सभी बिंदुओं पर पूर्ण है. पुलिस ने अपनी जांच सिर्फ दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट के लोगों तक सीमित क्यों रखी. युवक पुलिस की सुरक्षा में रहते थे, तो पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता की जांच क्यों नहीं की गयी शंकरसन साहू ने दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट के जरिये पुलिस के संपर्क में आकर सरेंडर किया. इसका मतलब पुलिस का दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट से संपर्क था कहीं जान बूझ कर तो पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता की जांच बंद तो नहीं की गयी, ताकि उन्हें बचाया जा सके. युवकों को फर्जी तरीके से नक्सली बता कर सरेंडर कराने के मामले में 28 मार्च 2014 को लोअर बाजार थाने में कर्रा निवासी प्रमेश प्रसाद की शिकायत केस दर्ज हुआ था. इसमें रवि बोदरा, दिनेश प्रजापति, जेरोलिन केरकेट्टा, मशी केरकेट्टा को आरोपी बनाया गया था. केस का सुपरविजन चार अप्रैल 2014 को हुआ था. जांच में दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट कांटाटोली के डायरेक्टर दिनेश प्रजापति, सहयोगी जेरेलिना, मसी केरकेट्टा और रवि बोदरा उर्फ बारला पर लगे आरोप सही पाये गये थे. पुलिस को पता चला कि 514 युवकों को पुरानी बिरसा मुंडा जेल में रखा गया था. वहां युवकों के नाम के आगे रजिस्टर में यह लिखा जाता था कि युवक सरेंडर करने के लिए हथियार लेकर आया है. जेल में युवकों की सुरक्षा में तैनात कोबरा बटालियन के जवानों का बयान भी पुलिस ने लिया था. लेकिन पुलिस को अनुसंधान में कई युवक नहीं मिले, जिन्हें पुरानी कैंप जेल में रखा गया था.
पुलिस को पता चला कि वे कमाने के लिए कहीं बाहर चले गये हैं. इस कारण उनका बयान नहीं लिया जा सका. खूंटी में सरेंडर करनेवाले शंकरसन साहू से जब पूछताछ की गयी, तो बताया कि उसने आठ फरवरी 2013 को खूंटी में सरेंडर किया था. उसे सरेंडर नीति के तहत पुलिस में नौकरी और अन्य लाभ भी मिले. (साभार – प्रभात खबर)
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