नीरज कुमार महंत
आजकल हमारी दिनचर्या ऐसी हो गई है कि हम हर चीज़ जल्द से जल्द करना चाहते हैं। वैसे देखा जाए तो हर काम जल्दी करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन जहां तक बात सीखने की आती है तो उसमें जल्दीबाज़ी करना उचित नहीं। ये बात तो हम सब जानते हैं कि किसी भी चीज़ को सीखने के लिए उस दिशा में निरंतर प्रयास करते रहना पड़ता है।
मगर हम ऐसा करते नहीं हैं। आजकल हममें से ज़्यादातर लोग सिर्फ़ विचार व्यक्त करने में रुचि रखते हैं। किसी चीज़ को सीखने में दिलचस्पी नहीं रखते। ऐसा क्यों होता है ?
ऐसा इसलिए होता है कि पहले ज्ञान का एकमात्र माध्यम पुस्तकें हुआ करती थीं पर आज “इंटरनेट” जैसे भी माध्यम हो गए हैं जिनसे हमें हर बात की जानकारी तुरंत मिल जाती है।
इसका सीधा असर हमारे सीखने कि क्षमता पर हो रहा है, हम सीखना कम कर रहे हैं और इंटरनेट पर बहुत ज़्यादा निर्भर होते जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, अगर हमें कुछ नया सीखना होता है तो हम तुंरत इंटरनेट पर जा कर उसके बारे में खोज-बीन करने लगते हैं। जो कि बदलते समय के साथ सही भी है पर क्या हम इंटरनेट पर जानकारी मिलने के बाद उसका अभ्यास करते हैं? अधिकतर नहीं।
क्योंकि हमारे मन में ये बात घर कर जाती है कि अब कोई भी जानकारी हमसे बर एक बटन की दूरी पर है जिसे हम जब चाहें पढ़ सकते हैं और यही बात हमें इंटरनेट पर निर्भर होने पर मजबूर कर देती है। इसपर ध्यान से देखें तो हम पाएंगे कि कुछ लोग गाड़ियों के बारे में बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं पर उन्हें गाड़ी चलानी नहीं आती।
इसका मुख्य कारण होता है अभ्यास ना करना। अभ्यास से हम हर उस बात की गहराई तक पहुंच सकते हैं जिनके बारे में हम सोचते हैं। अभ्यास हमारे अधूरे ज्ञान को पूरा करता है। अभ्यास हमें हमारी निर्बलता से दूर ले जाता है और ज्ञान को परिपूर्ण करता है। इसलिए किसी भी क्षेत्र में अभ्यास करना बहुत जरूरी होता है।